विचार

जनकलाल शर्मा-२

जनकलाललाई राहुल सांकृत्यायनका दुई चिठी

राहुल सांकृत्यायन |
बैशाख १७, २०७८ शुक्रबार ९:१५ बजे

हैपीवेली, मसूरी
प्रिय जनकलालजी,
पत्र पाकर बडी प्रसन्‍नता हुई । झंकार की प्रति नहीं मिली । नेपाल रेडियो कभी कभी सुन लेता हूँ । उसका स्थान ऐसा है, कि आसपास के अधिक शक्तिशाली स्टेशन दबा देते हैं ।


स्वास्थ्य के ख्यालसे अब मैं मसूरीसे कहीं इधर उधर नहीं जाता । इसी कारण आग्रह होनेपर भी नेपाल नहीं आया । भारतीय रेडियो के लिये भी अबतक मैंने कुछ नहीं लिखा, इसलिये आप के लिए भी लिखना नहीं चाहता । वैसे मेरी ‘आजकी राजनीति’ और ‘भागो नहीं बदलो’ से अपेक्षित अंश ले सकते हैं । 

‘दोर्जेलिंग परिचय ’ बाद मैने ‘हिमालय परिचय’ के दो खंड गढ़वाल और कुमाऊँ लिखी हैं, जिनमे गढ़वाल प्रेसमे चला भी गया है । यह दोनों भाग ५००/५०० पृष्ठ के है । तीसरा खंड देहरादून और चौथा खंड नेपाल होगा । इस साल देहरादून समाप्त कर मै नेपालमे हाथ लगाना चाहता हूं, इसमे आवश्यक पुस्तकोंको जमा कर रहा हूं । नेपालका भूगोल, इतिहास, स्कूलों में पढाया जाता, यदि भेज सकें तो अच्छा कहिं बुकसेलर या प्रकाशकका नाम पता दें तो
उनसे मै पुस्तकें मंगा लूंगा ।
मैं बारहों महीने यहीं रहता हूं ।

राहुल सांकृत्यायन

चिठ्ठी नं २
हैपीवेली, मसूरी
राहुल सांकृत्यायन

प्रिय जनकलालजी,
‘झंकार’ की प्रतियां मिल गई, लेकिन ८वें अंक नहीं ।

‘हिमालय परिचय’ एक एक खंड एक एक प्रतिस्तेय ग्रन्थ है, जिसके कुमाऊं और गढ़वाल लिख चुका हूं । गढ़वाल प्रेसमे है, देहरादून साल लिखना चाहता हूं, और नेपालका सामग्री जमा करना । नेपाल ५०० पृष्ठका ग्रन्थ रहेगा, ‘दोर्जेलिङ’ से प्रायः दूना । जो सामग्री मिले उसे भेजते जायें । साथ ही नेपालके किसी प्रतिष्ठित पुस्तक विक्रेता या प्रकाशकका नाम पता भी भेज दें । 
आपका राहुल सांकृत्यायन 

(चिठी स्रोत : प्रा.डा सुमन ढकाल)


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